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क्या ज्योतिष से आपके भविष्य का पता लग सकता है?

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, शुक्रवार, 11 नवंबर 2016 (10:29 IST)
भविष्य एकदम अनिश्‍चित नहीं है। हमारा ज्ञान अनिश्‍चित है। हमारा अज्ञान भारी है। भविष्‍य में हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। हम अंधे हैं। भविष्‍य का हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है इसलिए हम कहते हैं कि निश्‍चित नहीं है लेकिन भविष्‍य में दिखाई पड़ने लगे… और ज्‍योतिष भविष्‍य में देखने की प्रक्रिया है।.... ज्‍योतिष की बहुत गहनतम जो पकड़ है वह तो आपके अतीत के खोलने की है, क्‍योंकि आपके अतीत का अगर पूरा पता चल जाए तो आपका पूरा भविष्‍य पता चलता है, क्‍योंकि आपका भविष्‍य आपके अतीत से जन्मेगा। आपके भविष्‍य को आपके अतीत को जाने बिना नहीं जाना जा सकता है, क्‍योंकि आपका अतीत आपके भविष्‍य का बेटा होने वाला है। उसी से पैदा होगा। तो पहले तो आपके अतीत की पूरी स्‍मृति-रेखा को खोलना पड़े…अगर आपकी स्‍मृति रेखा को खोल दिया जाए…जिसकी प्रक्रियाएं हैं और विधियां हैं। - ओशो रजनीश
ज्योतिष के विरोधियों का तर्क :
1.ज्योतिष विद्या पर सवाल उठाने वाले हजारों लोग मिल जाएंगे। उनका तर्क है कि ज्योतिष ऐसी विद्या है लोगों को द्वंद, डर, विरोधाभास के जीवन में धकेलती है। इस पर विश्वास करने वाला ईश्वर पर या खुद पर भरोसा नहीं करता है। वह कर्म के सिद्धांत की अपेक्षा भाग्यवादी बनकर जीवन यापन करता है। इससे उसके जीवन में सुधार होने के बजाय वह और भयपूर्ण और विरोधाभासी जीवन जीने लगता है। जो व्यक्ति ज्योतिष को मानता है वह कभी भी भगवान की भक्ति नहीं कर सकता और वह अविश्वासी होकर संशय और गफलत में जीवन जीता है। ऐसे व्यक्ति में विश्वास और निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती। जो लोग वेद, ईश्‍वर और कर्म पर भरोसा करते हैं वे किसी ग्रह या नक्षत्र से नहीं डरते नहीं है। दरअसल, ज्योतिष या ज्योतिष विद्या नकारात्मक विचारों को बढ़ावा देकर भयभीत करने का कार्य करते हैं।
 
2.शोधकर्ताओं के अनुसार दुनियाभर के ज्योतिषियों द्वारा की जा रही भविष्यवाणियों में से मात्र 9 से 10 प्रतिशत ही उनकी भविष्यवाणियां सत्य होती है। यह तीर में तुक्के लगाने जैसा है। आज के ज्योतिषी भी भविष्य में घटने वाली खास घटनाओं के बारे में बताने में नाकाम रहे हैं। दुनिया की घटनाओं का विश्लेषण करने वाला एक जानकार विशेषज्ञ इससे भी कहीं अच्छी तरह बता सकता है कि आगे क्या होगा।
 
3.हमारे सौर मंडल में सभी ग्रहों के मिलाकर 64 चंद्रमा खोजे गए हैं और असंख्‍य उल्काएं सौर्य पथ पर भ्रमण कर रही हैं। अभी खोज जारी है, संभवत: चंद्रमा और उल्काओं की संख्याएं बढ़ेंगी। यदि प्रभाव की बात करें तो धरती पर सूर्य और चंद्र का ही नहीं प्लुटो (यम) और नेप्चून (वरुण) का भी पड़ता है तो उन्हें क्यों नहीं कुंडली में महत्व दिया जाता? राहु और केतु तो कोई ग्रह है ही नहीं। सूर्य तो स्थिर है फिर वह कुंडली में कैसे गति करता है? दूसरी बात यह कि राशियां सिर्फ बारह नहीं होती। सौर पथ पर कम से कम 22 राशिया हैं, उनमें से 13 प्रमुख है। उस तेरहवीं राशि को ओफियुकस और चौदहवीं राशि को 'हाइड्रा' कहा जाता है।
 
4.राशियों के अनुसार लोगों का चरित्र घोषित कर दिया जाता है जोकि अवैज्ञानिक है। जैसे, सिंह राशि वाले के चरित्र को सिंह के समान मानकर उसे साहसी, क्रोधी आदि घोषित किया जाता है और कन्या राशि के व्यक्ति को विनम्र, संकोची और सरल स्वभाव का माना जाता है। यह मूर्खता पूर्ण है, क्योंकि राशियों का निर्धारण तो आकाश में दिखाई देने वाले आकार के आधार पर किया गया। जैसे, तारों का एक झुंड सिंह के सामन दिखाई देता है तो दूसरा झुंड बिच्छू के समान। इन राशियों का नाम इस आधार पर रखे जाने का मतलब गलत निकाला गया। इनका नाम कुछ और भी रखा जा सकता था? ओफियुकस राशि सर्प के समान दिखाई देती है। अब क्या उस राशि नक्षत्र में जन्म लेने वाले को हम सर्प के स्वभाव का मानें? चंद्र राशि सही है या कि सूर्य राशि यह भी तो सही तरीके से स्थापित नहीं है।
 
अगले पन्ने पर जानिए फिर आखिर ज्योतिष सच है या झूठ...

ज्योतिष के पक्ष में तर्क : 
1.ज्योतिष के बारे में ऐसी धारण इसलिए फैली क्योंकि वर्तमान में ज्योतिष के जानकार कम और इस विद्या से धनलाभ प्राप्त करने वाले ज्यादा है। इस विद्या को कर्मकांड और देवी देवताओं की पूजा से जोड़कर देखें जाने के कारण भी इसके प्रति भ्रम फैला है। इसके अलावा ज्योतिष के नाम पर वर्तमान में अन्य कई विद्याएं भी प्रचलन में आ गई है जो कि ज्योतिष की प्रतिष्ठा गिरा रही है। इसके अलवा वर्तमान में संचार के माध्यम बढ़ने के कारण इस विद्या के नाम पर तरह तरह के यंत्र, ताबीज आदि बेचे जा रहे हैं, यज्ञ और कर्मकांड के बड़े-बड़े आयोजन किए जाने के कारण भी यह विद्या संदेह के दायरे में आ गई है। अब इस विद्या के जानकार कम और इस विद्या से धनलाभ प्राप्त करने वाले बहुत मिल जाएंगे तो मनमाने उपाय बताकर लोगों को भटकाने और डराने का कार्य ज्यादा करते हैं।
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2.ज्योतिष अद्वैत का विज्ञान है। प्राचीनकाल में यह खगोल विज्ञान, वास्तु विज्ञान और ग्रह-नक्षत्रों की गणना से जुड़ा था। उक्त काल में नक्षत्र के आधार पर धरती का मौसम और मानव पर उसके प्रभाव की गणना की जाती थी। वेद के 6 अंग हैं जिसमें 6ठा अंग ज्योतिष है। वेद अनुसार ज्योतिष खगोल विज्ञान है। ज्योतिष को वेदों का नेत्र माना गया है। ऋग्वेद में ज्योतिष से संबंधित लगभग 30 श्लोक हैं, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। यूरेनस को एक राशि में आने के लिए 84 वर्ष, नेप्च्यून को 1,648 वर्ष तथा प्लूटो को 2,844 वर्षों का समय लगता है। ऐसा कहते हैं कि प्राचीनकाल में ज्योतिष 27 नक्षत्रों पर आधारित था, न कि 12 राशियों पर। जैसे-जैसे समय गुजरा, विभिन्न सभ्यताओं ने ज्योतिष में प्रयोग किए और चंद्रमा और सूर्य के आधार पर राशियां बनाईं और लोगों का भविष्य बताना शुरू किया।
 
3. ग्रह तो और भी हैं लेकिन यूरेनस को एक राशि में आने के लिए 84 वर्ष, नेप्चुन को 1648 वर्ष तथा प्लुटो को 2844 वर्षों का समय लगता है। इसलिए उनका धरती और जीवन पर कोई खास प्रभाव नहीं होता। 64 में ज्यादा भी हो सकते हैं लेकिन हमारे चंद्रमा का ही धरती पर प्रभाव पड़ता है। यह सही है कि राहु और केतु कोई ग्रह नहीं है, लेकिन यह धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनका प्रभाव हमारे जीवन पर सबसे गहरा होता है। इसके अलावा सूर्य के प्रकाश का चन्द्रमा की सतह से परावर्तन होता है, तो जो प्रकाश परावर्तित होकर ऊपर चला जाता है वह केतु है। तथा जो प्रकाश चन्द्रमा को वेधकर नीचे या दूसरी तरफ उस पार नहीं जाता और छाया पड़ जाती है वह राहू है। अर्थात चमकीला भाग केतु एवं काला भाग राहू है। इसीलिए आकाश में टूटने वाले तारे या ऐसे ही अस्थाई चमकीले तारे विविध नामो से जाने जाते हैं। यथा- पुच्छल केतु, उपकेतु, धूमकेतु, भौमकेतु आदि।
 
4.राशियां किसी का चरित्र बताने के लिए नहीं होती। ज्योतिष विज्ञान का भौतिक प्रयोगशाला में परीक्षण नहीं होता परन्तु इस विज्ञान में भी कारण और प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखार्इ देता है। इस विज्ञान के प्रयोग में गुरुत्वाकर्षण को कारण माना जाता है व शरीर को वस्तु जिसके ऊपर अंतरिक्षीय तत्वों के प्रभाव का पौराणिक नियम एवं सिद्धान्त के आधार पर विश्लेषण किया जाता है। इस आधार पर भौतिक विज्ञान के नियमों को मानने वाले ज्योतिष शास्त्र को विज्ञान कह सकते हैं।
 
6.पिछली दो शताब्दियों में किसी भी वस्तु, विषय या सिध्दांतों को भौतिकतावादी आधुनिक विज्ञान के कसौटी पर परखने का एक ऐसा सिलसिला प्रारंभ हुआ जिसने अनेकानेक आधारहीन अंधविश्वासों की धज्जियां उड़ाने में कुछ अति महत्वपूर्ण विषयों व आस्थाओं को भी संदेह के कटघरे में खड़ा कर दिया। इस क्रम में ज्योतिष को संभवत : सबसे अधिक तिरस्कृत व उपेक्षित विषय साबित करने की चेष्टा की गई है। रही सही कसर बॉलीवुड की फिल्मों और साहित्य में ज्योतिष का मजाक मानकर पूरी कर दी गई। ज्योतिष की कुछ किताबें पढ़कर कुछ लोग लोगों का भविष्य बताने लगे जाते हैं इससे भी इस विद्या की प्रतिष्ठा गिरी है। यही वजह है कि अपने आपको अत्याधुनिक व वैज्ञानिक विचारों का पोषक दिखाने के फैशन में अधिकांश लोग इस गूढ़ विद्या को मूर्खता व अंधविश्वास का पर्याय भी समझने लगे।
 
वास्तव में ज्योतिष विद्या न केवल विज्ञान है अपितु विज्ञानों का भी विज्ञान है। भारत के प्राचीन मनीषियों ने सनातन काल से इस विद्या को ज्ञान-विज्ञान , धर्म व अध्यात्म आदि विषयों में सर्वोत्कृष्ट स्थान देते हुए इसके महत्व को विशेष रूप से रेखांकित किया है। ऋग्वेद में पंचानवे हजार वर्ष पहले जो ग्रह -नक्षत्रों की स्थिति थी, उसका उल्लेख किया गया है, जिसका जिक्र करते हुए लोकमान्य तिलक ने यह अनुमान व्यक्त किया था कि हमारे वेद निश्चित रूप से पंचानवे हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन हैं।
 
ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। यह सिर्फ भविष्य बताने की विद्या नहीं है बल्कि भविष्य बदलने की विद्या भी है। इसे सीखना आसान नहीं है। छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त होता है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है। 
 
अगले पन्ने पर जानिए ज्योतिष में कितने तरह से भविष्य बताया जा सकता है...

माना जाता है कि भारत में लगभग 150 से ज्यादा ज्योतिष विद्या प्रचलित है। कुंडली या फलित ज्योतिष, लाल किताब की विद्या, अंक ज्योतिष, नंदी नाड़ी ज्योतिष, पंच पक्षी सिद्धान्त, हस्तरेखा ज्योतिष, नक्षत्र ज्योतिष, अंगूठा शास्त्र, सामुद्रिक विद्या, वैदिक ज्योतिष, आदि। माना यह भी जाता है कि प्रत्येक विद्या भविष्य बताने में सक्षम है, लेकिन उक्त विद्या के जानकार कम ही मिलते हैं, जबकि भटकाने वाले ज्यादा।
 
1. कुंडली ज्योतिष :- यह कुंडली पर आधारित विद्या है। इसके तीन भाग है- सिद्धांत ज्योतिष, संहिता ज्योतिष और होरा शास्त्र। इस विद्या के अनुसार व्यक्ति के जन्म के समय में आकाश में जो ग्रह, तारा या नक्षत्र जहाँ था उस पर आधारित कुंडली बनाई जाती है। 
 
बारह राशियों पर आधारित नौ ग्रह और 27 नक्षत्रों का अध्ययन कर जातक का भविष्य बताया जाता है। उक्त विद्या को बहुत से भागों में विभक्त किया गया है, लेकिन आधुनिक दौर में मुख्यत: चार माने जाते हैं। ये चार निम्न हैं- नवजात ज्योतिष, कतार्चिक ज्योतिष, प्रतिघंटा या प्रश्न कुंडली और विश्व ज्योतिष विद्या।
 
2. लाल किताब की विद्या :- यह मूलत: उत्तरांचल, हिमाचल और कश्मीर क्षेत्र की विद्या है। इसे ज्योतिष के परंपरागत सिद्धांत से हटकर 'व्यावहारिक ज्ञान' माना जाता है। इसे बहुत ही कठिन विद्या माना जाता है। इसके अच्‍छे जानकार बगैर कुंडली को देखे उपाय बताकर समस्या का समाधान कर सकते हैं। उक्त विद्या के सिद्धांत को एकत्र कर सर्वप्रथम इस पर एक ‍पुस्तक प्रकाशित की थी जिसका नाम था 'लाल किताब के फरमान'। मान्यता अनुसार उक्त किताब को उर्दू में लिखा गया था इसलिए इसके बारे में भ्रम उत्पन्न हो गया।
 
3. गणितीय ज्योतिष :- इस भारतीय विद्या को अंक विद्या भी कहते हैं। इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र, राशि आदि के अंक निर्धारित हैं। फिर जन्म तारीख, वर्ष आदि के जोड़ अनुसार भाग्यशाली अंक और भाग्य निकाला जाता है।
 
4. नंदी नाड़ी ज्योतिष :- यह मूल रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित विद्या है जिसमें ताड़पत्र के द्वारा भविष्य जाना जाता है। इस विद्या के जन्मदाता भगवान शंकर के गण नंदी हैं इसी कारण इसे नंदी नाड़ी ज्योतिष विद्या कहा जाता है।
 
5. पंच पक्षी सिद्धान्त :- यह भी दक्षिण भारत में प्रचलित है। इस ज्योतिष सिद्धान्त के अंतर्गत समय को पाँच भागों में बाँटकर प्रत्येक भाग का नाम एक विशेष पक्षी पर रखा गया है। इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई कार्य किया जाता है उस समय जिस पक्षी की स्थिति होती है उसी के अनुरूप उसका फल मिलता है। पंच पक्षी सिद्धान्त के अंतर्गत आने वाले पाँच पंक्षी के नाम हैं गिद्ध, उल्लू, कौआ, मुर्गा और मोर। आपके लग्न, नक्षत्र, जन्म स्थान के आधार पर आपका पक्षी ज्ञात कर आपका भविष्य बताया जाता है।
 
6. हस्तरेखा ज्योतिष :- हाथों की आड़ी-तिरछी और सीधी रेखाओं के अलावा, हाथों के चक्र, द्वीप, क्रास आदि का अध्ययन कर व्यक्ति का भूत और भविष्य बताया जाता है। यह बहुत ही प्राचीन विद्या है और भारत के सभी राज्यों में प्रचलित है।
 
7. नक्षत्र ज्योतिष :- वैदिक काल में नक्षत्रों पर आधारित ज्योतिष विज्ञान ज्यादा प्रचलित था। जो व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता था उसके उस नक्षत्र अनुसार उसका भविष्य बताया जाता था। नक्षत्र 27 होते हैं। 
 
8. अँगूठा शास्त्र :- यह विद्या भी दक्षिण भारत में प्रचलित है। इसके अनुसार अँगूठे की छाप लेकर उस पर उभरी रेखाओं का अध्ययन कर बताया जाता है कि जातक का भविष्य कैसा होगा।
 
9. सामुद्रिक विद्या:- यह विद्या भी भारत की सबसे प्राचीन विद्या है। इसके अंतर्गत व्यक्ति के चेहरे, नाक-नक्श और माथे की रेखा सहित संपूर्ण शरीर की बनावट का अध्ययन कर व्यक्ति के चरित्र और भविष्य को बताया जाता है।
 
10. वैदिक ज्योतिष :- वैदिक ज्योतिष अनुसार राशि चक्र, नवग्रह, जन्म राशि के आधा‍र पर गणना की जाती है। मूलत: नक्षत्रों की गणना और गति को आधार बनाया जाता है। मान्यता अनुसार वेदों का ज्योतिष किसी व्यक्ति के भविष्य कथक के लिए नहीं, खगोलीय गणना तथा काल को विभक्त करने के लिए था।
 
11. टैरो कार्ड :- टैरो कार्ड में ताश की तरह पत्ते होते हैं। जब भी कोई व्यक्ति अपना भविष्य या भाग्य जानने के लिए टैरो कार्ड के जानकार के पास जाता है तो वह जानकार एक कार्ड निकालकर उसमें लिखा उसका भविष्य बताता है। यह उसी तरह हो सकता है जैसा की पिंजरे के तोते से कार्ड निकलवाकर भविष्य जाना जाता है। यह उस तरह भी है जैसे कि बस स्टॉप या रेलवे स्टेशन पर एक मशीन लगी होती है जिसमें एक रुपए का सिक्का डालो और जान लो भविष्य। किसी मेले या जत्रा में एक कम्प्यूटर होता है जो आपका भविष्य बताता है। अब इसमें कितनी सच्चाई होती है यह कहना मुश्किल है।
 
12. चीनी ज्योतिष :- चीनी ज्योतिष में बारह वर्ष को पशुओं के नाम पर नामांकित किया गया है। इसे 'पशु-नामांकित राशि-चक्र' कहते हैं। यही उनकी बारह राशियां हैं, जिन्हें 'वर्ष' या 'सम्बन्धित पशु-वर्ष' के नाम से जानते हैं। यह वर्ष निम्न हैं- चूहा, बैल, चीता, बिल्ली, ड्रैगन, सर्प, अश्व, बकरी, वानर, मुर्ग, कुत्ता और सुअर। जो व्यक्ति जिस वर्ष में जन्मा उसकी राशि उसी वर्ष अनुसार होती है और उसके चरित्र, गुण और भाग्य का निर्णय भी उसी वर्ष की गणना अनुसार माना जाता है।
 
इसके अलावा माया, हेलेनिस्टिक, सेल्टिक, पर्शियन या इस्लामिक, बेबिलोनी आदि अनेक ज्योतिष धारणाएँ हैं। हर देश की अपनी अलग ज्योतिष धारणाएं हैं और अलग-अलग भविष्यवाणियां।


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