Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

आईना 2018 : भीड़ हत्या, आतंकवाद, एनसीआर के मुद्दे छाए रहे इस साल

हमें फॉलो करें आईना 2018 : भीड़ हत्या, आतंकवाद, एनसीआर के मुद्दे छाए रहे इस साल
, रविवार, 30 दिसंबर 2018 (13:49 IST)
नई दिल्ली। देश में इस साल गोकशी के नाम पर भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के साथ-साथ पत्थरबाजी, महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार, असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, रोहिंग्या समुदाय को वापस भेजने जैसे मुद्दे छाए रहे।
 
बाहरी सुरक्षा के मोर्चे पर पाकिस्तान से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाओं में भी पिछले वर्षों की तुलना में इस साल अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों और सेना की संयुक्त कार्रवाई में इस वर्ष जहां रिकॉर्ड संख्या में आतंकवादी ढेर किए गए, वहीं बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए। केंद्र सरकार ने नरम रुख अपनाते हुए जम्मू-कश्मीर में रमजान के दौरान सुरक्षा बलों के अभियानों को स्थगित कर दिया। भारतीय जनता पार्टी और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का गठबंधन टूटने के बाद जून में राज्य में राज्यपाल शासन लगाया गया था, जो साल के अंत में राष्ट्रपति के शासन में तब्दील हो गया।
 
गोकशी और बच्चों को उठाने के मामलों में सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट के वायरल होने की समस्या को देखते हुए सरकार ने सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए भी कई कदम उठाए और कुछ नियम बनाए।
 
जम्मू-कश्मीर में स्थानीय निकायों के चुनाव, पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम का हटाना, पश्चिमी सीमा पर स्मार्ट बाड़ लगाना, आपात स्थिति के लिए देशभर में समान फोन नंबर 112 लागू करना, द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग पर पहला भारत-चीन समझौता और राष्ट्रीय पुलिस स्मारक की स्थापना इस वर्ष सरकार की उपलब्धि रही।
 
सरकार का दावा है कि इस वर्ष देश में आंतरिक सुरक्षा की स्थिति कुल मिलाकर शांतिपूर्ण रही और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का दायरा कम होकर 58 जिलों तक सिमट गया जबकि बांग्लादेश, म्यांमार और चीन से लगती सीमाओं पर कोई घटनाक्रम नहीं होने से स्थिति में सुधार देखने को मिला। पाकिस्तान से लगती सीमा पर इस साल संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाओं में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई और गत जुलाई तक ही नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर संघर्षविराम उल्लंघन की 1,432 घटनाएं दर्ज की गईं।
 
जम्मू-कश्मीर में पूरे साल सुरक्षाकर्मी आतंकवादियों और पत्थरबाजों से लोहा लेते रहे। पत्थरबाजी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने सुलह का कदम उठाते हुए मई में रमजान के दौरान सुरक्षाबलों के अभियानों को स्थगित रखा लेकिन इसके परिणाम सकारात्मक नहीं मिलने पर इसे आगे नहीं बढ़ाया गया। सुरक्षाबलों के सेना के साथ मिलकर चलाए गए अभियानों में गत 2 दिसंबर तक रिकॉर्डतोड़ 232 आतंकवादी मारे गए जबकि 86 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए और विभिन्न घटनाओं में 37 असैनिकों की भी मौत हुई। केंद्र ने जम्मू-कश्मीर पुलिस में 2 महिला बटालियनों के गठन की भी मंजूरी दी।
 
राज्य में लगभग 13 वर्षों के बाद शहरी निकायों के और 7 वर्ष के बाद पंचायत चुनाव सफलतापूर्वक कराए गए। इससे इन निकायों को विकास कार्यों के लिए 4,335 करोड़ रुपए की राशि आवंटित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
 
देशभर में गोकशी और बच्चों को उठाने वाले लोगों की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या की इस साल लगभग 20 घटनाएं सामने आने के बाद सरकार ने इस समस्या से निपटने के उपाय सुझाने के लिए गृह सचिव की अध्यक्षता में गत 23 जुलाई को एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया। बाद में इस समिति की सिफारिशों पर विचार के लिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में एक मंत्री समूह का भी गठन किया गया। इस तरह की घटनाओं में सोशल मीडिया के जरिए अफवाहों और फर्जी संदेश भेजने पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने सोशल मीडिया की कंपनियों के साथ बैठकें कर इन कंपनियों पर भी नकेल कसी।
 
सरकार ने महिला सुरक्षा के क्षेत्र में बड़ा कदम उठाते हुए गृह मंत्रालय में महिला सुरक्षा के सभी पहलुओं के समाधान के उद्देश्य से एक अलग डिवीजन बनाई और साइबर अपराधों की शिकायतों के लिए एक वेबसाइट भी शुरू की। यह डिवीजन सभी संबंधित मंत्रालयों और विभागों के साथ मिलकर महिला सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय मिशन पर काम करेगा।
 
कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं और शिकायतों को देखते हुए सरकार ने गत 24 अक्टूबर को गृहमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्री समूह का गठन किया। साइबर क्षेत्र और सोशल मीडिया में अश्लील सामग्री पर अंकुश लगाने के लिए भी अलग से वेबसाइट शुरू की गई। बच्चों के यौन शोषण की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी लगाम लगाने के लिए पोक्सो कानून में संशोधन कर दोषियों के लिए सजा-ए-मौत का प्रावधान किया गया।
 
सरकार का दावा है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में उसकी विकास योजनाओं को लागू करने और नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की उसकी दोहरी नीति सफल रही है। नक्सल क्षेत्रों में हिंसा की घटनाओं में कमी आई है और प्रभावित जिलों की संख्या 2013 के 76 जिलों से घटकर 58 रह गई है। हालाकि कुछ नए जिलों में नक्सली अपना प्रभाव बढ़ाने में सफल रहे हैं।
 
पूर्वोत्तर में भी सुरक्षा परिदृश्य में सुधार हुआ है और इसे देखते हुए मेघालय और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) हटा लिया गया है। सरकार ने नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड के 2 गुटों के साथ संघर्षविराम समझौते की अवधि एक साल के लिए बढ़ा दी है। पिछले 2 दशकों में इस वर्ष उग्रवादी हिंसा की सबसे कम घटनाएं हुईं और इनमें 63 फीसदी की कमी आई। त्रिपुरा और मिजोरम से उग्रवाद लगभग समाप्त हो गया।
 
असम में सरकार ने अवैध नागरिकों की समस्या से निपटने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है और नागरिकों के लिए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर लागू करने की प्रक्रिया शुरू की है, हालांकि इसका व्यापक विरोध होने पर यह मामला उच्चतम न्यायालय में है और सारी प्रक्रिया उसकी निगरानी में ही हो रही है।
 
म्यांमार से अवैध रूप से आकर देश के विभिन्न राज्यों में लंबे समय से रह रहे रोहिंग्या समुदाय के लोगों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू करने पर भी अच्छा-खासा विवाद हुआ। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था ने भी इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताते हुए इस पर सवाल खड़े किए। सरकार ने इनकी वापसी के लिए म्यांमार और बांग्लादेश सरकार के साथ भी विचार-विमर्श किया है। एक अनुमान के अनुसार देश में अभी लगभग 40 हजार रोहिंग्या रह रहे हैं।
 
सीमापार से घुसपैठ की समस्या पर काबू पाने के लिए जम्मू-कश्मीर में स्मार्ट बाड़ लगाने की शुरुआत की गई और 2 जगहों पर इसका उद्घाटन किया गया। सेंसर और राडारों पर आधारित यह बाड़ सीमा पर किसी भी हलचल का तुरंत और आसानी से पता लगा लेती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जीत के बाद विराट कोहली की दहाड़, पूर्व क्रिकेटरों को दिया करारा जवाब