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बीते साल रक्तरंजित रहा कश्मीर, रिकॉर्डतोड़ आतंकवादी मार गिराए

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नई दिल्‍ली। लगभग तीन दशकों से आतंकवाद से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में बीते वर्ष सेना आतंकवादियों पर भारी पड़ी और उसने जहां 250 से अधिक आतंकवादियों को ढेर किया, वहीं आतंकियों से लोहा लेते हुए 90 से अधिक सुरक्षाकर्मी शहीद हुए तथा 37 नागरिक मारे गए। नियंत्रण रेखा तथा अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं में भी 2018 के दौरान अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई और गत जुलाई में ही यह आंकड़ा 1400 को पार कर गया।


राज्य में लंबे अतंराल के बाद पूर्व नौकरशाह के बजाय किसी राजनीतिक नेता को राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई। साल के शुरू में गठबंधन सरकार के घटक दलों पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और भारतीय जनता पार्टी के बीच बढ़ी तनातनी के चलते जून में सरकार गिर गई और राज्य में राज्यपाल शासन लगा दिया गया जो साल का अंत होते-होते राष्ट्रपति शासन में तब्दील हो गया। राज्यपाल शासन लगाते समय विधानसभा को लंबित रखा गया था लेकिन दिसम्बर के शुरू में राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी।

उन्होंने कहा कि यह कदम राज्य में विधायकों की संभावित खरीद-फरोख्त के कारण उठाया गया। वार्षिक अमरनाथ यात्रा के शांतिपूर्ण ढंग से पूरा होने तथा राज्य में लगभग 13 वर्षों के बाद शहरी निकायों के और सात वर्ष के बाद पंचायत चुनाव का सफल आयोजन प्रशासन की उपलब्धि रही। केन्द्र ने नरम रुख अपनाते हुए जम्मू कश्मीर में रमजान के दौरान सुरक्षाबलों के अभियानों को स्थगित कर दिया।

सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद को लंबे समय से झेल रहे जम्मू-कश्मीर में सेना ने इस बार पुलिस और केन्द्रीय बलों के साथ मिलकर आतंकवादियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए ‘ऑपरेशन ऑल आउट’ शुरू किया। पत्थरबाजों के खिलाफ भी कड़ा रुख अपना गया। खुफिया एजेन्सियों और जांच एजेन्सियों ने आतंकवादियों के फंडिंग नेटवर्क की कमर तोड़ने के लिए ‘एंटी टेरर फंडिंग’ अभियान चलाकर उन्हें मिलने वाले हवाला के धन पर अंकुश लगा दिया।

इससे बौखलाए आतंकवादियों ने पूरी ताकत से बार-बार घाटी में तबाही फैलाने की कोशिश की। सुरक्षाबलों के सालभर चले अभियानों में रिकॉर्डतोड़ 257 आतंकवादी मारे गए जिनमें कुख्यात आतंकवादी संगठनों लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद के कई खूंखार आतंकवादी ढेर हुए। पिछले दस वर्षों में यह एक रिकॉर्ड है। आतंकवादियों के विरुद्ध विभिन्न अभियानों में 91 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए जिनमें से 40 से अधिक पुलिसकर्मी थे। संघर्ष विराम उल्लंघन तथा विभिन्न अभियानों और झड़पों में 37 नागरिक भी मारे गए।

राष्ट्रीय जांच एजेन्सी (एनआईए) ने टेरर फंडिंग के खिलाफ राजधानी दिल्ली और कश्मीर सहित 20 से भी अधिक ठिकानों पर छापेमारी कर छह लोगों को गिरफ्तार किया जिनमें आतंकवादी सरगना सैयह अली शाह गिलानी का दामाद भी शामिल था। सुरक्षाबल पूरे साल स्थानीय पत्थरबाजों से भी लोहा लेते रहे। पत्थरबाजी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए केन्द्र सरकार ने सुलह का कदम उठाते हुए गत मई में रमजान के दौरान सुरक्षाबलों के अभियानों को स्थगित रखा लेकिन इसके परिणाम सकारात्मक नहीं मिलने पर इसे आगे नहीं बढाया गया।

पत्थरबाजों में महिलाओं और लड़कियों के भी शामिल होने पर केन्द्र ने जम्मू कश्मीर पुलिस में दो महिला बटालियनों के गठन की भी मंजूरी दी। हर साल की तरह पाकिस्तानी सेना ने इस बार भी सीमाओं पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया और अंतरराष्ट्रीय सीमा तथा नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं की संख्या गत जुलाई में ही 1432 पहुंच गई जो पिछले कई वर्षों की तुलना में कहीं अधिक है। इन घटनाओं में कई नागरिक भी मारे गए और बड़ी संख्या में लोगों को घर छोड़कर सुरक्षित जगहों पर जाना पड़ा।

सेना ने भी संघर्ष विराम उल्लंघन का करारा जवाब दिया और पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान पहुंचाया। राज्य में विधानसभा चुनावों के बाद सत्ता के लिए बने भाजपा और पीडीपी के अस्वाभाविक गठबंधन में चौथे साल के आते-आते दरार पड़ गई जिसकी परिणति पहले राज्यपाल शासन और फिर राष्ट्रपति शासन के रूप में हुई। राज्य में लगभग 13 वर्षों के बाद शहरी निकायों के और सात वर्ष के बाद पंचायत चुनाव सफलतापूर्वक कराए गए। इससे इन निकायों को विकास कार्यों के लिए 4335 करोड रुपए की राशि आवंटित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

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