Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

वर्ष 2009 : सेहत के लिए डरावना साल

स्‍वाइन फ्लू ने उड़ाए सबके होश

हमें फॉलो करें वर्ष 2009 : सेहत के लिए डरावना साल

स्मृति आदित्य

ND
भारत में कहावत प्रचलित है कि पहला धन निरोगी काया। सेहत को लेकर अधिकांश कहावतें और सीख भारत में ही मिलती है। विडंबना यह है कि सेहत को लेकर जिस व्यापक जागरूकता की आवश्यकता है भारत में उसी का नितांत अभाव है। बीते वर्ष वैश्विक स्तर पर एक ऐसी महामारी ने सबकी नींद हराम की, जिसका अब तक कारगर इलाज नहीं मिल सका है। स्वाइन फ्लू नामक इस बीमारी ने हजारों लोगों की जान ले लीं।

यह दुखद तथ्य है कि इस बीमारी के अलावा अन्य बीमारियों के मृत्यु आँकड़े भी बढ़ते क्रम में पाए गए हैं। बढ़ती बीमारियाँ राष्ट्रीय स्तर पर जिस चिंता का विषय बननी थीं वह नहीं बनी और अन्तत: हर प्रदेश के हर शहर में आग लगने पर कुआँ खोदने की स्थिति दिखाई दीं। बीमारियों से लड़ने के लिए जिस प्रकार की मुस्तैदी और सावधानी अपेक्षित थी बड़े अस्पतालों में ही वह नदारद थी। ऐसे में छोटे शहरों और गाँवों की हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। एक स्वाईन फ्लू को कुछ देर के लिए हाशिए पर रख भी दें तो बीते साल डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, कैंसर(सभी प्रकार के), एड्स, डेंगू, प्रसव मृत्यु, हार्ट अटैक, अस्थमा, मलेरिया, हेपेटाइटिस, टीबी, ब्रेन ट्यूमर, ब्रेन हैमरेज से मरने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।

जहाँ इन बीमारियों पर नियंत्रण जैसी स्थिति देखी गईं वहाँ भुखमरी, अवसाद, उन्माद व त्वचा संबंधी रोगों ने अपना जाल फैला रखा है। साल 2009 प्राकृतिक आपदाओं के लिए नहीं बल्कि जनता की खुद बुलाई आपदा के लिए अधिक जाना जाएगा। क्योंकि स्वच्छता और पोषण इन दो मोर्चों पर जनता द्वारा बरती असावधानियाँ ही नई-नई बीमारियों की जनक बनीं।

webdunia
ND
स्‍वाइन फ्लू: सबसे पहले इस बीमारी के लक्षण मैक्सिको के वेराक्रूज इलाके के एक पिग फार्म्स के आसपास रह रहे लोगों में पाए गए थे। यह संक्रमण एच1 एन1 नामक घातक वायरस की वजह से फैलता गया। इस बीमारी के वायरस सूअर से फैले। स्वाइन फ्लू को साधारण फ्लू से लक्षण के आधार पर अंतर करना संभव नहीं है। लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आने से जिसे स्वाइन फ्लू है, इसकफैलनआशंका अधिक बढ़ी।

विशेषज्ञों ने बताया कि संक्रमित व्यक्ति के खाँसने या छींकने से, उन वस्तुओं को हाथ लगाने से जिसे संक्रमित व्यक्ति ने छुआ हो, संक्रमित व्यक्ति स्वयं के लक्षण आने के एक दिन पहले से सात दिन बाद तक इसे फैला सकता है। बीमारी के फैलते ही फेस मास्क व रेस्पिरेटर बचाव के लिए तेजी से प्रयोग में आने लगे। वायरस को ज्यादा प्रभावशाली तरीके से दूर रखने के हरसंभव उपाय खोजे जा रहे हैं। अभी तक इसका टीका बाजार में उपलब्ध नहीं है। आसिलटेमाविर (टेमीफ्लू) नाम की दवा लक्षण आरंभ होने के 48 घंटे के अंदर शुरू करने की सलाह दी जा रही है।

आमतौर पर पशुओं और पालतू जानवरों को होने वाले वायरस के हमले कभी इंसानों तक नहीं पहुँचते। इसकी वजह यह है कि जीव विज्ञान की दृष्टि से इंसानों और जानवरों की बनावट में फर्क है। देखा यह गया था कि जो लोग सूअर पालन के व्यवसाय में हैं और लंबे समय तक सूअरों के संपर्क में रहते हैं, उन्हें स्वाइन फ्लू होने का जोखिम अधिक रहता है।

मध्य 20वीं सदी से अब तक के चिकित्सा इतिहास में केवल 50 केसेस ही ऐसे हैं जिनमें वायरस सूअरों से इंसानों तक पहुँचा हो। ध्यान में रखने योग्य यह बात है कि सूअर का माँस खाने वालों को यह वायरस नहीं लगता क्योंकि पकने के दौरान यह नष्ट हो जाता है।

वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हैल्थ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह वायरस अब केवल सूअरों तक सीमित नहीं है, इसने इंसानों के बीच फैलने की कुवत हासिल कर ली है। अमेरिका में 2005 से केवल 12 मामले ही सामने आए थे। एन्फ्लूएंजा वायरस की खासियत यह है कि यह लगातार अपना स्वरूप बदलता रहता है। इसकी वजह से यह उन एंटीबॉडीज को भी छका देता है जो पहली बार हुए एन्फ्लूएंजा के दौरान विकसित हुई थीं। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के वैक्सीन का भी इस वायरस पर असर नहीं होता।

क्या है खतरा
1930 में पहली बार ए1एन1 वायरस के सामने आने के बाद से 1998 तक इस वायरस के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। 1998 और 2002 के बीच इस वायरस के तीन विभिन्न स्वरूप सामने आए। इनके भी 5 अलग-अलग जीनोटाइप थे। मानव जाति के लिए जो सबसे बड़ा जोखिम सामने है वह है स्वाइन एन्फ्लूएंजा वायरस के म्यूटेट करने का जोकि स्पेनिश फ्लू की तरह घातक भी हो सकता है। चूँकि यह इंसानों के बीच फैलता है इसलिए सारे विश्व के इसकी चपेट में आने का खतरा है।

कैसे बचेंगे
webdunia
ND
सूअरों को एविएन और ह्यूमन एन्फ्लूएंजा स्ट्रेन दोनों का संक्रमण हो सकता है। इसलिए उसके शरीर में एंटीजेनिक शिफ्ट के कारण नए एन्फ्लूएंजा स्ट्रेन का जन्म हो सकता है। किसी भी एन्फ्लूएंजा के वायरस का मानवों में संक्रमण श्वास प्रणाली के माध्यम से होता है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति का खाँसना और छींकना या ऐसे उपकरणों का स्पर्श करना जो दूसरों के संपर्क में भी आता है, उन्हें भी संक्रमित कर सकता है। जो संक्रमित नहीं वे भी दरवाजा के हैंडल, टेलीफोन के रिसीवर या टॉयलेट के नल के स्पर्श के बाद स्वयं की नाक पर हाथ लगाने भर से संक्रमित हो सकते हैं।

ताजा आँकड़े
दिसंबर 2009 के ताजा आँकड़ों के अनुसार विश्व स्तर पर अब तक स्वाईन फ्लू के 6, 22,482 केस दर्ज हुए हैं। जबकि मरने वालों की संख्या 9596 तक पहुँच चुकी है। भारत में अब तक 21,731 केस स्वाईन फ्लू के पाए गए हैं और मरने वालों की संख्या 700 के आँकड़े तक जा चुकी है। चिंता का सबब यह है कि यह संख्या अभी भी लगातार बढ़ रही है। अमेरिका में इस बीमारी से 6131, युरोप में 1242, दक्षिण-पूर्वी एशिया में 814, पश्चिमी क्षेत्र में 848, मध्य पूर्वी क्षेत्र में 452 तथा अफ्रीका में 109 लोग मारे गए हैं।

webdunia
ND
एड्स
अत्यंत सावधानी और जागरूकता कार्यक्रम के बावजूद एड्स की बीमारी पर प्रभावी नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया में एड्स के मरीजों की संख्या तीन करोड़ 34 लाख तक हो गई है, जिसमें 21 लाख बच्चे हैं। जबकि 2008 में तकरीबन 27 लाख नए लोग एचआईवी और एड्स से पीड़ित हुए। वायरस के शिकार ज्यादातर लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों से हैं लेकिन आज एड्स दुनिया भर के सभी देशों के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए खतरा बना हुआ है। इस रोग का पहली बार 1981 में पता चला और अब तक ढाई करोड़ लोग बीमारी से मर चुके हैं और तकरीबन हर दिन साढ़े सात हजार लोगों को नया संक्रमण होता है। एड्स से निपटने के लिए दुनिया भर में खास कार्यक्रम चल रहे हैं।

वर्ष 2009 के आँकड़े परेशानी में डालने वाले हैं। 5.2 मीलियन एचआईवी पीड़‍ितों में 40% भारतीय हैं और उनमें भी अधिकांश महिलाएँ हैं जिन्हें यह रोग अपने पति या पार्टनर से मिला है।

गर्भाशय कैंसर
विश्व भर में गर्भाशय कैंसर के 4,93,000 नए मामले आए हैं उनमें से 27 प्रतिशत यानी 1,32,000 तो मात्र अकेले भारत में ही हैं। और अगर इससे होने वाली मौतों के आँकड़ों पर नजर डालें तो दुनिया भर में 2,73,000 औरतें इस गंभीर बीमारी का शिकार बनती हैं, इनमें से भी 27 प्रतिशत औरतें भारत से ही होती हैं यानी 74,000। यह स्पष्ट है कि इन औरतों को बचाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जा रहा है।

webdunia
ND
ऐसा नहीं है कि यह रोग किसी वर्ग विशेष या आयु वर्ग तक ही सीमित है या फिर कोई अन्य किस्म का कैंसर इससे भी अधिक भारतीय स्त्रियों की जानें ले रहा है। भारत में सभी आयु वर्ग की उन महिलाओं की बात करें जो 23 किस्म के कैंसरों में से किसी न किसी प्रकार के कैंसर से ग्रस्त हैं तो उनमें भी सबसे ऊपर 26.5 प्रतिशत के साथ गर्भाशय के कैंसर का स्थान है। इसके बाद स्तन कैंसर का नाम आता है जो 16.5 प्रतिशत औरतों को ग्रस्त किए हुए है और काबिले गौर बात है कि लोगों के बीच गर्भाशय कैंसर के मुकाबले स्तन कैंसर की जागरूकता अधिक है।

चूँकि जागरूकता कम है इसलिए इस रोग की स्क्रीनिंग भी कम ही होती है। गौर करें इन आँकड़ों पर कि प्रत्येक 3 सालों में 18 से 69 वर्ष की सभी भारतीय महिलाओं में से मात्र 2.6 प्रतिशत की ही स्क्रीनिंग हो पाती है।

webdunia
ND
इन कुल महिलाओं में से शहरी औरतें 4.3 तथा ग्रामीण औरतें 2.3 प्रतिशत हैं। यही वजह है कि इस वर्ष 2009 में केवल 1,32 082 औरतों में गर्भाशय कैंसर का मालूम चला है जबकि हकीकत यह है कि हमारे देश में 15 वर्ष के अधिक उम्र की36 करोड़ 65 लाख 80 हजार औरतें इस खतरे की जद में हैं। 74,118 औरतें हर साल, इस बीमारी के कारण जिंदगी से हार जाती हैं। ह्‌यूमन पैपीलोमा वायरस या एच.पी.वी. वह वायरस है जो गर्भाशय कैंसर का सबसे प्रमुख कारण है। 99.7 प्रतिशत गर्भाशय कैंसर के मूल में यही वायरस होता है। एच.पी.वी. पर हमला करने वाली वैक्सीन ही इस कैंसर से होने वाली मौतों में कमी ला सकती है।

पर सबसे पहले जरूरी है नियमित स्क्रीनिंग। विश्व स्वास्थ्य संगठन सिफारिश करता है कि वीआईएलआई, वीआईए, एचपीवी डीएनए टेस्ट, पारंपरिक पीएपी, लिक्विड बेस्ड पीएपी, इन 5 तरीकों से स्क्रीनिंग टेस्ट किए जाएँ। भविष्य के इस अनुमान से कि सन्‌ 2025 में गर्भाशय के कैंसर से 365 औरतों की रोजाना मौतें हो सकती हैं, हमें जल्द सचेत होने की आवश्यकता है।

चेतावनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि दुनियाभर में जिस तेजी के साथ संक्रामक रोक फैल रहे हैं, वैसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। डब्ल्यूएचओ की यह ताजा रिपोर्ट स्वास्थ्य सुरक्षा पर आधारित है जिसमें कहा गया है कि दुनियाभर में बीमारियाँ खतरे के स्तर तक बढ़ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि आज दुनिया के तमाम देश एक-दूसरे से जिस तेजी से जुड़ते जा रहे हैं, ऐसे में पूरे खुलेपन और परस्पर सहयोग से ही इन बीमारियों से निपटा जा सकता है। संगठन ने चेताया है कि अगर ये एहतियात नहीं बरती गई तो दुनियाभर में न केवल स्वास्थ्य बल्कि अर्थव्यवस्था और सुरक्षा भी प्रभावित होंगे।

webdunia
ND
रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह की जीवन शैली दुनियाभर के लोग जी रहे हैं, उसके लिहाज से उपलब्ध सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर्याप्त नहीं है। संगठन ने पाया है कि वर्ष 1967 से अब तक नौ पैथोजन खोजे जा चुके हैं जिनमें एचआईवी, एबोला, मारबर्ग विषाणु और स्वास तंत्र को प्रभावित करने वाले पैथोजन शामिल हैं। प्रतिवर्ष लगभग दो अरब लोग वायुयानों से दुनियाभर में एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करते हैं। ऐसे में बीमारियों का संक्रमण भी लोगों के साथ एक जगह से दूसरी जगह पहुँचता रहता है और एक हवाई यात्रा भर से आप इसकी चपेट में आ सकते हैं।

रिपोर्ट में एक बात पर विशेष रूप से जोर दिया गया है और वह है नई बीमारियों के प्रति दुनियाभर में लोगों की सजगता में कमी। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 21वीं सदी में कई प्रतिरोधी दवाएँ और वैक्सीन विकसित की गईं और इससे बीमारियाँ नियंत्रित की गईं पर इसका एक दूसरा पहलू यह है कि लोगों में बीमारियों के प्रति सजगता कम हो गई।

ताजा स्थितियाँ ऐसी हैं कि दुनियाभर में जिस तेजी से संक्रामक बीमारियाँ फैल रही हैं उस तेजी से पहले कभी नहीं फैलीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सलाह दी है कि इसके लिए बीमारियों से जुड़े आँकड़ों को छिपाना नहीं चाहिए और बीमारियों से लड़ने की दिशा में जो भी नई खोज, वायरस सैंपल या दवाएँ हासिल हों, उन्हें दूसरे देशों को भी बताना चाहिए।

आने वाला साल सेहत की दृष्टि से सकारात्मक हो और बढ़ती बीमारियों के बढ़ते आँकड़ों की रफ्तार धीमी हो इसलिए एक असरकारी राष्ट्रीय मुहिम की जरूरत है। स्वास्थ्य मंत्रालय भी आँकड़ों की भयावहता और दायित्वों के प्रति गंभीरता महसूस करें तो शायद देश की गिरती हालत सुधारी जा सके।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi