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भारत की विदेश नीति में हिन्दी का अधिकतम प्रयोग हो

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भोपाल। विश्व हिन्दी सम्मेलन में ‘विदेश नीति में हिन्दी‘ विषय पर आयोजित समानांतर सत्र में विशेषज्ञों ने भारत की विदेश नीति में हिन्दी के अधिकतम प्रयोग पर जोर दिया है।

10 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में बृहस्पतिवार को इस विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता करते हुए सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा कि आमतौर पर यह धारणा रही है कि विदेश नीति में हिन्दी का क्या काम है। जबकि संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है अत: ज्यादा से ज्यादा काम हिन्दी में किया जाना आवश्यक है।
 
वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली ने कहा कि बीते एक वर्ष में विदेश मंत्रालय में हिन्दी का प्रयोग काफी बढ़ा है। विदेश मंत्रालय में मौलिक हिन्दी लेखन भी होने लगा है।
 
उन्होंने विदेश मंत्रालय की वेबसाइट में मौलिक हिन्दी लेखन को और बढ़ाने की आवश्यकता जताई। अली ने इस वेबसाइट पर क्षेत्रीय भाषाओं में भी जानकारी उपलब्ध करवाने का सुझाव दिया।
 
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री तो हिन्दी में बोल रहे हैं, लेकिन विदेश मंत्रालय के अधिकारी आज भी अंग्रेजी ज्यादा बोलते हैं। इसके अनुवाद में कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है। उन्होंने कहा कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिये 129 देशों के समर्थन की जरूरत है। योग दिवस के प्रस्ताव को 177 देशों का समर्थन मिला।
 
न्यूयार्क में महा वाणिज्यिक दूत ज्ञानेश्वर मुले ने हिन्दी प्रचार-प्रसार में राजनयिकों की भूमिका पर बोलते हुए कहा कि हम दूसरे देशों को अपने देश के हितों के बारे में अपनी भाषा में ज्यादा अच्छी तरह बता सकते हैं। उन्होंने कहा कि राजनयिकों को हिन्दी में बात करना आना चाहिए। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि हम आपस में भी अंग्रेजी में बात करते हैं। जब तक हमारे नेता, उच्चायुक्त, राजदूत और अन्य वरिष्ठ अधिकारी हिन्दी नहीं बोलेंगे तब तक हिन्दी की स्थिति में सुधार नहीं होगा। उन्होंने विदेश सेवा में हिन्दी अभियान चलाने और वैश्विक हिन्दी नीति बनाने का सुझाव दिया।
 
अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा के प्राध्यापक गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि दुनिया में अनेक ऐसे देश हैं जहाँ विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कोई बात कही जाती है तो वह वहाँ की राष्ट्र भाषा में होती है। ऐसा ही भारत में होना चाहिए।
 
उन्होंने हिन्दी भाषांतरकारों और अनुवादकों की कमी दूर करने के लिये विदेशी भाषाओं को हमारी शिक्षा व्यवस्था में शामिल करने का सुझाव दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ में अपर सचिव अतुल खरे ने सत्र को संबोधित किया।

डॉ. अतुल खरे ने कहा कि यह गलत धारणा है कि हिन्दी एक अविकसित भाषा है, जिसमें राजनय ‍सहित अनेक विषयों की अभिव्यक्ति की क्षमता नहीं है। इस धारणा को दूर करना होगा। 

(वेबदुनिया)

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